जिंदगी को चलते देखा है।
ठहरा रहता है सूरज पर मेरी नजरों ने
उसको भी चलते देखा है।
चंदा मामा को भी मैंने
घटते और बढ़ते देखा है।
पेड़ की डालियों को
अठखेलियां करते देखा है।
इन बादलों को भी मैंने एक दूजे के संग
हाथ पकड़कर चलते देखा है।
फिर इन्हें बिना भेदभाव
गांव से लेकर शहर तक बरसते देखा है।
चिड़ियों के चहचहाने से लेकर
इस आसमां का सफर तय करते देखा है।
देखा है इन आंखों ने खुद की आंखों से
सावन को बरसते देखा है।
इन वादियों इन फिजाओं को भी
मैंने रंग बदलते देखा है।
सुबह को उठते और शाम को मैंने
ढलते देखा है।
बिना पानी के जीवन को
मैंने कई दफा चलते देखा है।
लोगों को एक दूसरे के लिए
लोगों पर मरते देखा है।
पलक झपकते ही अपने सपनों को
आसमान में उड़ते देखा है।
समुद्र की लहरों को
किनारों को छूते देखा है।
पर्वतों से निकलती नदियों को
सागर में जाकर गिरते देखा है।
त्योहारों पर भी घर को
दुल्हन की तरह सजते देखा है।
मेरी इस ज़िंदगी ने ज़िंदगी का
सफर तय करते देखा हैं।
देखा है मेरी इन आंखों ने
लोगों को लोगों के सामने
हाथ को पसारते देखा है।
ज़िंदगी में बहुत से लोगों को
उनकी हंसी पल को पलकों में संजोते देखा है।
कट जाते हैं कैसे सुख और दुख
मैंने अपने जीते जी देखा है।
इस मिट्टी में बीज डालने पर
उसमें से फल को देते देखा है।
उन नन्हे हाथों को मैंने मां पापा का
हाथ पकड़ कर चलते देखा है।
देखा है मेरी इन आंखों में जीवन को जीते देखा है।
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