अगर मज़लूम कुछ बोले तो दहशत-गर्द कहती है
-ज़मीर अतरौलवी
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
ख़ामुशी भी तो हुई पुश्त-पनाही की तरह
-परवीन शाकिर
कुछ ज़ुल्म ओ सितम सहने की आदत भी है हम को
कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है
-ज़िया ज़मीर
बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही
अब हम को दुश्मनों की ज़रूरत नहीं रही
- सलमान अख़्तर
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