Wednesday, September 30, 2020

जुल्म शायरी

हज़ारों ज़ुल्म हों मज़लूम पर तो चुप रहे दुनिया 
अगर मज़लूम कुछ बोले तो दहशत-गर्द कहती है 
-ज़मीर अतरौलवी


ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा 
ख़ामुशी भी तो हुई पुश्त-पनाही की तरह 
-परवीन शाकिर


कुछ ज़ुल्म ओ सितम सहने की आदत भी है हम को 
कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है 
-ज़िया ज़मीर

बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही 
अब हम को दुश्मनों की ज़रूरत नहीं रही 
- सलमान अख़्तर

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