रफ़्ता-रफ़्ता चल ज़िंदगी, कुछ और सुलझाना बाकी है!
शास्वत समर्पित, इन रिश्तों को, हर दिल में टटोलना बाकी है!
सहेजना है, तिनका-तिनका इनको, दिल को दर्पण बनाना बाकी है!
निज-निजता की, रेल-पेल में, रिश्ते सब बे रंग हो गए!
भावनाओ के मधुर रस का, इक रंग चढ़ाना बाकी है!
आत्मनिर्भरता के, घन चक्कर में, रिश्ते सब चकना चूर हुये है,
कुछ तो जुड़ गए, कुछ को जुड़वाना अभी बाकी है!
रिश्ते तो, जीवन की सफलता के पैमाने है,
इनमें कुछ जाम छलक चुका है, और कुछ छलकाना अभी बाकी है!
रिश्ते में तो, प्रेम और मर्यादा की बहती गंगा है,
इसमें कुछ पतवार चल चुकी है, अभी कुछ पतवार चलाना बाकी है!
पतझड़ से बिखरते, रिश्तों को, पग-पग से उठाना बाकी है!
रफ़्ता-रफ़्ता चल ज़िंदगी, कुछ और सुलझाना बाकी है!
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