ख़ालीपन का यहाँ कोई काम नहीं,
बेचैनी हैं, ग़म हैं, हर तरह के सितम हैं,
यहां सब ख़ास हैं, कोई आम नहीं,
वो जो चेहरे पर खिल जाती हैं फूलों की तरह,
कैसे मैं उसको पुकारूँ, मुझको बताया गया है,
उसका कोई नाम नहीं,
सुना हैं मय हर रंज भुला देता है,
मेरा होश जो पूरी तरह उड़ा दे, ऐसा कोई जाम नहीं,
किसी के घर हम भी मेहमान होते,
मग़र कहीं से आता कोई पैगाम नहीं,
हम तो सूरज को सर पे उठाए फ़िरते हैं,
मेरे क़िस्सों में आने वाली कोई शाम नहीं,
मुझसे यहां कोई दोस्ती करें कैसे,
मुझसे ज़्यादा यहां कोई बदनाम नहीं।
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