मैं नतीज़ा जानते हुए भी चुप रहता हूं
बेस्वाद ज़िंदगी का हर स्वाद चखता हूं
मुश्किलों कर ज़ाल में लगातार फंसता हूं
चलता चलता राहों में इश्क़ कर पत्ते बिखेरता हूं
ग़ुलाम होकर भी मैं 'रानी' कर लिये लड़ता हूं
मौत से लड़कर भी मैं 'मौत' को गले लगाता हूं
ज़िन्दगी का 'इस्तीफ़ा' सिर्फ़ ख़ुदा को सौंपता हूं
ख़ामोशी का 'कम्बल' ओढ़े बहुत बोल देता हूं
'आशु' लिखता लिखता मैं 'ज़िन्दगी' लिख देता हूं
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