क्या छुपा है दिल में खुल कर राज़ बतलाते नहीं..(1)
किस ख़ता की दे रहे कैसी सज़ा वो आजकल..
जानें क्यूं मुझपर रहम थोड़ा सा भी खाते नहीं..(2)
दूं सदा किस दर पे जाकर मतलबी सारा जहां..
अजनबी रूहों के आबूदानें तो भाते नहीं..(3)
तुम ख़फा हो मुझसे या फिर माजरा कुछ और है..
ज़िंदगी के फलसफ़े मुझको समझ आते नहीं..(4)
याद जो आंऊ कभी तो क्या किया करते हो' तुम.?
रोते हो या आह भी लब पर कभी लाते नहीं.?(5)
कैसे सो जाते हो तुम मुझको बिना सोचे सनम..
हम तुम्हें सोचे बिना पलकें भी झपकाते नहीं..(6)
वास्ता किस का दें क्या कह कर बुलायें पास अब
रूठ कर जो बिछड़े वो वापिस कभी आते नहीं..!!(7)
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