Sunday, December 3, 2023

दिल लगाना छोड़ दिया

 दिल्लगी से दिल लगाना छोड़ दिया

हमने तेरे शहर मे आना जाना छोड़ दिया

बंज़ारा बने फिरते है महफिल-ऐ-खास मे
एक शख्श ने हमको पागल बना छोड़ दिया

तेरे बेरुख लहज़े ने बड़ा ज़ख़्मी किया हमको
सो हमने तुमसे बोलना-बतियाना छोड़ दिया

ये मेहंदी ये श्रंगार किस काम के तुझ बिन
हमने सज़ने-संवरने का हर बहाना छोड़ दिया

गैरत ढूंढने निकले थे हम बैगैरत शहर मे
गैरत ने तो कबका अपना ठिकाना छोड़ दिया

ज़ब से मिटा है तू हाथ की लकीरो से मेरे
हमने मुक़ददर को आज़माना छोड़ दिया

ज़ब से तू निगाह से ओज़ल हुयी "कृष्णा"
हमने आँखों मे सुरमा सज़ाना छोड़ दिया

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