Tuesday, December 5, 2023

सारी मस्ती शराब की सी है

हस्ती अपनी हबाब की सी है 

ये नुमाइश सराब की सी है 


नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए 

पंखुड़ी इक गुलाब की सी है 


चश्म-ए-दिल खोल इस भी आलम पर 

याँ की औक़ात ख़्वाब की सी है 


बार बार उस के दर पे जाता हूँ 

हालत अब इज़्तिराब की सी है 


नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू 

बैत इक इंतिख़ाब की सी है 


मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़ 

उसी ख़ाना-ख़राब की सी है 

आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद 

देर से बू कबाब की सी है 


देखिए अब्र की तरह अब के 

मेरी चश्म-ए-पुर-आब की सी है 


'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में 

सारी मस्ती शराब की सी है 

Meer Taqi Meer 

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