बड़ा मुश्क़िल है ये इल्म -ओ-हुनर आजमाना भी
उन्हीं से दूर रहना और उन्ही को चाहना भी!
मुनासिब नहीं है रखना अंधेरे में अपने अहबाब को
चाहें जज़्बात जिनको बताना उन्हीं से छुपाना भी!
लाख रखो जज़्ब दिल में फसाने गैरों की नज़र से
नज़र मग़र हर-वक़्त हमपर रखता है जमाना भी!
महफूज़ हवाओं से भला कौन रह पाया है
भले कम कर दिया है गली कूचे में आना जाना भी!
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