ये जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है
कभी हंसाती कभी रुलाती है
लगाती है ठहाके मेरी हालत पर
कभी रोती कभी गुनगुनाती है
बहती है जिंदगी निर्झर की भांति
ख़ुद बेरंग होकर सारे रंग दिखाती है
कहती है मुझसे चल तू मेरे संग
ना चले तो कर दूंगी बेरंग
कहती हूं मैं ठहर तू एक पल
जाना कहां है अब चलेंगे कल
थके कदम अभी थके नहीं की
जिंदगी ने हाथ खींचा
कहा दूर है मंजिल अब भी
संघर्ष ही मेरा नाम है दूजा
लड़खड़ाते कदम और गिर पड़ी मैं
जिंदगी ने साथ छोड़ा
वक्त की जंजीर टूटी
सामने आजाद खड़ी मैं
सामने आजाद खड़ी मैं।
No comments:
Post a Comment