तेरे संग नज़रों का ,यूँ झुक जाना,
मोहब्बत के धागे में,
पिरो जाता है।
जन्मों के बंधन का ,
दिलाकर एहसास,
यूँ ही खयालों में ,खिंच जाता हूँ ।
ख़ुद की नज़रों से ,होकर ओझल,
तेरे हुस्न का दिवाना ,बन जाता हूँ ।
जब से हुए है रूबरू तुमसे,
एक सनाम सा रिश्ता ,बन गया है हमारा।
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