कुछ तस्वीरें हैं तेरी, जिन्हे हर रोज निहारता हूं,
पता है आएगी न तू, तुझे फिर भी पुकारता हूं,
छिड़ी ही जंग जहन में की, मुझे तुझ को भूलना है,
उसे हर रोज में लड़ता हूं, उसे हर रोज हारता हूं ।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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