इस जुस्तजू में आया हूं की तेरी नज़र मिले।
मेरे अरमानों का घर सपनो का शहर मिले।।
खिल चुके है गुल गुलशन में इश्क के जो।
इस मुसाफिर को केवल उनकी डगर मिले ।।
आलम ए हुस्न इस सांस पर भारी है फिर।
जीने को इस जिंदगी उस की बसर मिले।।
इस तसव्वुर को तू और तेरी तलाश फिर।
इस शायरी में उम्दा फिर तेरा ज़िक्र मिले।।
मदहोश दिल की मस्ती दिल में है कैद जो।
ये शराब पीकर मुझको फिर से सुरूर मिले।।
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