Sunday, December 3, 2023

हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे असर तो हो

कि हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे असर तो हो

हकीक़त में कहीं पर हो न हो आंखो में घर तो हो

तुम्हारे प्यार की बातें बताते हैं ज़माने को

तुम्हें खबरों में रखते हैं मगर तुमको खबर तो हो 

----

हर एक नदिया के होंठो पर समंदर का तराना है

यहां फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है

वही बातें पुरानी थी वही किस्सा पुराना है

तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से जमाना है

----

हमें दो पल सुरूर ए इश्क में मदहोश रहने दो

ज़ेहन की सीढियाँ उतरो अमाँ ये जोश रहने दो ,

तुम्हीं कहते थे ये मसले नज़र सुलझी तो सुलझेंगे

ज़र की बात है तो फिर ये लब खामोश रहने दो

----

अभी चलता हूं रस्ते को मैं मंजिल मान लूं कैसे

मसीहा दिल को अपनी दिल का कातिल मान लूं कैसे

तुम्हारी याद के आदिम अंधरे मुझको घेरे हैं

तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूं कैसे 

----

हमें बेहोश कर साकी पीला भी कुछ नहीं हमको

करम भी कुछ नहीं हमको, सीला भी कुछ नहीं हमको

मोहब्बत ने दिया है सब, मोहब्बत ने लिया है सब

मिला भी कुछ नहीं हमको, गिला कुछ नहीं हमको

----

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है...

मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है

----

जब भी मुंह ढक लेता हूँ तेरी ज्ल्फों की छावं में

जब भी मुंह ढक लेता हूँ तेरी ज्ल्फों की छावं में

कितने गीत उतर आत हैं मेरे मन के छांव में

एक गीत पलकों पर लिखना, एक गीत होंठों पर लिखना

यानी सारे गीत हृदय की मीठी से चोटों पर लिखना

जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नंगे पांव में

ऐसे गीत उतर आते हैं मेरे मन के गांव में

----

पलकें बंद हुईं तो जैसे धरती के उन्माद सो गए

पलकें अगर उठीं तो बिन बोले संवाद हो गए

जैसे धुप चुनरिया ओढ़े आ बैठी हों छांव में

ऐसे गीत उतर आते हैं मेरे मन के गांव में 

----

कब तक गीत सुनाऊं राधा

कि मथुरा छूटी, छूटी द्वारका इन्द्रप्रस्थ ठुकराऊं 

बंसी छूठी गोकुल छूठा, कब तक चक्र उठाऊं

पिछले जन्म जानकी तुझ बिन जैसे-तैसे बीता

महासमर में रीता रीता कब तक गाऊं गीता

और अभी कितने जन्मों तक तुझसे दूर बीताऊँ

कब तक गीत सुनाऊं राधा, कब तक गीत सुनाऊं

इस पीड़ा को यार सुदामा यार सुदामा

कब तक महल दिखाऊँ

कब तक गीत सुनाऊं

दो माओं ने लाड़ लड़ाया

दो चेहरों ने चाहा, फिर भी भरी द्वारका में खुद को लगा पराया

मेरा क्या अपराध कि मेरा गांव गली घर छूठा

आंचल से बिछड़े को जग ने पीताम्बर पहनाया

जग चाहे जाते जाते भी बंसी बजाऊं

कब तक गीत सुनाऊं राधा.... 

----

कि जग भर के अपराध सदा ही अपने ही शीश उठाए

रस का माखन सबने चाखा, चोर हम ही कहलाये

युग के दुर्योधन के जब जब अहंकार को कुचला

दुनिया जीती गांधारी के शाप हम ही ने खाए

मुझको गले लगाओ या बस मैं ही गले लगाऊं

कब तक गीत सुनाऊं राधा, कब तक गीत सुनाऊं 

----

जगत के प्रपंचों से जब राम ऊबे

तो सरयू के जलधर में राम डूबे

वही धार यमुना में आकर मिली तो

तेरे रूप में दोनों संसार डूबे

ये संसार सागर है तू है खेवैया

अरे सुन ले मोहन बंसी बजैया

कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया


है तुझपर न्योछवर तेरी दो दो मैया

कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया


रसखान तुझपर संवारे सवैया

कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया


कोई कह रहा न अब आएगा तू

धरा पूछती है कि कब आएगा तू

कोई कह रहा अँधेरा बढ़ेगा तो 

धरती बचाने को कब आएगा तू

अंधेरा भी तू है, उजाला भी तू है

कि गोरा भी तू है काला भी तू है

कि तुझ तक पहुंचने की सुविधा भी तू है

अगर हम न पहुंचे तो दुविधा भी तू है

हमें कुछ नहीं सिर्फ इतना पता है

कि तू जग ग्वाला है हम तेरी गैया

कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया, कन्हैया 

तूने ही चौसर की बाजी सजाई

जिसे हारना था उसे जिताई


बहुत हो अब तो धरती पर आ रे

कहीं दामिनी जंग हारे हुए है

कोई तेरे गोपी की अस्मत उतारे

कोई बदनजर तेरे राधा को ताड़े 


कुमार विश्वास