दर्द दुनिया भर का सीने में लिए जाते हैं हम
ज़िंदगी जीने की मजबूरी जिए जाते हैं हम
अपने दामन से छुड़ा अब कहते ग़ैरों का हुआ
बे-ख़ता दोहरी सज़ाएँ भी पिए जाते हैं हम
यूँ तो ये बाज़ार महफ़िल पर सभी वीरान हैं
फिर भी वीराने में आवाज़ें दिए जाते हैं हमबह रही हैं हर ज़बाँ पर उन की ज़ालिम दास्ताँ
फिर भी कुछ ऐसा कि होंटों को सिए जाते हैं हम
एक ताज़ा चोट यूँ बरसी की पहली धुल गई
इस तरह से ग़म ग़लत ग़म से किए जाते हैं हमरामदरश मिश्र
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