बारिश के बाद की धूप,
इंद्रधनुष से धरती पे उतरती धूप
पेड़ की पत्तियों पर चमकती धूप,
चेहरे पर आके निखरती धूप,
कहि कहि जो डूब रहा था,
देखो अब वो सुख रहा है,
गली मोहल्लों में पानी के रेले,
धीरे-धीरे टूट रहा है,
छत से जो पानी टपक रहा था,
देखो अब वो चटक रहा है,
कभी जलती थी जो धूप,
अब कितनी कोमल लगती है धूप,
गीला गीला था तन मन,
सुखा धूप में आया कितना आनन्द,
शीलन का वी गीला गन्ध,
धूप से मीट गया सारा दुर्गन्ध,
सारा दिन बीत चुका,
क्षितिज ने धूप को बुलाया है
जहाँ से वो आया है,
धूप से नाता अब छूट रहा हैं,
देखो क्षितिज में वो डूब रहा हैं,
कल फिर ले के आना सूरज,
यही प्यारी सी धूप।
No comments:
Post a Comment