कुछ रिश्तों के नाम नहीं तो
कुछ रिश्ते हैं सिर्फ नाम के..
मौका देख के बनते रिश्ते
कौन हैं कब कितने काम के..
क़ीमत अदा करनी ही होती
प्राप्य नहीं कुछ बिना दाम के..
कुछ साथी ही सुबह के होते
साथी बहुत होते हैं शाम के..
काम पड़े तब ही मिलते हैं
कौन आते हैं बिना काम के..
कुछ गिनते ही रह जाते हैं
ले पाते कुछ स्वाद आम के..
लगती नहीं किनारे अपनी
जीवन नैया बिना राम के
Monday, December 4, 2023
कुछ रिश्तों के नाम नहीं
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