महफ़िल से उठ जाने वालो तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम
तुम आबाद घरों के बासी मैं आवारा और बदनाममेरे साथी ख़ाली जाम
दो दिन तुम ने प्यार जताया दो दिन तुम से मेल रहा
अच्छा ख़ासा वक़्त कटा और अच्छा ख़ासा खेल रहा
अब उस खेल का ज़िक्र ही क्या कि वक़्त कटा और खेल तमाम
मेरे साथी ख़ाली जाम
तुम ने ढूँडी सुख की दौलत मैं ने पाला ग़म का रोग
कैसे बनता कैसे निभता ये रिश्ता और ये संजोग
मैं ने दिल को दिल से तोला तुम ने माँगे प्यार के दाम
मेरे साथी ख़ाली जाम
तुम दुनिया को बेहतर समझे मैं पागल था ख़्वार हुआ
तुम को अपनाने निकला था ख़ुद से भी बेज़ार हुआ
देख लिया घर-फूँक तमाशा जान लिया मैं ने अंजाम
मेरे साथी ख़ाली जाम
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