जब भी कुछ गाना चाहा
मैंने मुस्कुराना चाहा
पंखों की कामना हुई
मैंने उड़ जाना चाहा
धरती क्या आसमान नज़रों में रहे
बादलों की ओट से-
तुम बुलाते रहे
कभी चाँद बनकर लुभाया तुमने
कभी रात बनकर जगाया तुमने
कभी बादल से घिर -घिर आये
और रुलाया तुमने
मरुभूमि सा रहा मेरा जीवन
मरीचिकाओं में
ताउम्र भरमाया तुमने
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