अजीब हाल है मेरा कि मुझको मेरा दुख
किसी के मुस्करा देने पे याद आता है.
एक शोले की हिफाजत में उम्र गुजरेगी
एक शोला जो मुझे खाक किए जाता है.
इल्म है मुझको कि मैं अच्छा नहीं हूं
सो किसी के सामने खुलता नहीं हूं
जब मैं दरिया था तो कितनी तिश्नगी थी
अब मैं सहरा हूं, मगर प्यासा नहीं हूं.
अपने सारे राज हम उनको बताए बैठे हैं
यानी खुद को उनके चंगुल में फंसाए बैठे हैं
तुम बहुत खुश हो तो तुमसे शायरी होगी नहीं
ये सुना था तब से दिल लगाए बैठे हैं.
बस एक शख्स की खामोशी से गिला है मुझे
वही जो आईने से रोज देखता है मुझे.
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महफिल में नाम उसका पुकारा गया था और
सब लोग थे कि मेरी तरफ देखने लगे.
एक तो है बदन उदासी का
उसपे भी पैरहन उदासी का
कौन बिछड़ा था पहली बार यहां
किससे आया चलन उदासी का.
बिछड़ने पर तमाशा क्यों बनाएं
तुम्हारी हम जरूरत थे, नहीं हैं.
हसीन चेहरे भी रहते हैं प्यार से महरूम
हर इक फूल पे तितली कहां ठहरती है.
कभी मैं देखता हूं तेरी तस्वीर
कभी मजबूरियों को देखता हूं.
हसीन शाम भी तो साथ में गुजारी है
तुम्हारे पास शिकायत की लिस्ट सारी है.
बुरा है हाल मगर मुस्करा रहा हूं मैं
कमान टूट गई और जंग जारी है.
हमारी बाहों में है और उसका चैन नहीं
गलत ये ट्रेन में बैठी हुई सवारी है.
बातों की भी कमी नहीं होती
मिलने पर बात भी नहीं होती
अपने पहलू से बांध ले मुझको
और आवारगी नहीं होती.
तुझको कुछ और देर रोकता मैं
गर से बस आखिरी नहीं होती.
भूख थी घर का मसअला पहला
हमने उस दौर में पढ़ाई की.
मुझको सीने से मत लगाया कर
अब जरूरत नहीं दवाई की.
इससे अच्छा तो इश्क कर लेते
हमने बेकार में पढ़ाई की.
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