Tuesday, December 5, 2023

मृदु स्पंदन

समस्त भावों को अपने चढ़ाती

मौन स्पंद मेरी तुझे बुलाती।

जो तुम आए ना इस बार

दहकेगी वेदना क्षुब्ध प्यास।


सृष्टि के कन कन का कंपन

रुक जाएगा आदि अनंत स्फुरण।

विराम विश्राम लगेगा जीवन पर

मिटेगी संवेदना जल थल पर।


नियति नृत्य करेगी कहरों से

डूबेगी धरा अश्रु लहरों से।

पिघल गिरि गिर बहेगा पार

जगती ज्वाला की कंचन धार।


ढलती रातों में आलोक तिमिर

चीत्कारेगी क्रंदन करती पीर।

प्रकट हो जाएगा जर्जर विकार

बचेगा ना कोई उर्वर उपसंहार।


जन्म मृत्यु की भयावह संसृति

बिखरेगी अंत आरंभ की नीति।

जड़ - चेतन का सुदृढ़ बंधन

शांत हो जाएगा मृदु स्पंदन।

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