Monday, December 4, 2023

दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं

दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं 

रोने वालों से हँसी अच्छी नहीं 

मुँह बनाता है बुरा क्यूँ वक़्त-ए-वाज़ 
आज वाइ'ज़ तू ने पी अच्छी नहीं 

ज़ुल्फ़-ए-यार इतना न रख दिल से लगाओ 
दोस्ती नादान की अच्छी नहीं 

बुत-कदे से मय-कदा अच्छा मिरा 
बे-ख़ुदी अच्छी ख़ुदी अच्छी नहीं 

मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या 
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं 


इस क़दर खिंचती है क्यूँ ऐ ज़ुल्फ़-ए-यार 

ले के दिल इतनी कजी अच्छी नहीं 

आएँ मेरी बज़्म-ए-मातम में वो क्या 
हाथ में मेंहदी रची अच्छी नहीं 

शैख़ को दे दो मय-ए-बे-रंग-ओ-बू 
उस की क़िस्मत से खिंची अच्छी नहीं 

इक हसीं हो दिल के बहलाने को रोज़ 
रोज़ की ये दिल-लगी अच्छी नहीं 

ज़र्रा ज़र्रा आफ़्ताब-ए-हश्र है 
हश्र अच्छा वो गली अच्छी नहीं 

अहल-ए-महशर से न उलझो तुम 'रियाज़' 
हश्र में दीवानगी अच्छी नहीं 

रियाज़ ख़ैराबादी

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