न रुकते हैं आँसू न थमते हैं नाले
कहो कोई कैसे मोहब्बत छुपा ले
करे कोई क्या गर वो आएँ यकायक
निगाहों को रोके कि दिल को सँभाले
चमन वाले बिजली से बोले न चाले
ग़रीबों के घर बे-ख़ता फूँक डाले
क़यामत हैं ज़ालिम की नीची निगाहें
ख़ुदा जाने क्या हो जो नज़रें उठा ले
करूँ ऐसा सज्दा वो घबरा के कह दें
ख़ुदा के लिए अब तो सर को उठा लेतुम्हें बंदा-पर्वर हमीं जानते हैं
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
बस इतनी सी दूरी ये मैं हूँ ये मंज़िल
कहाँ आ के फूटे हैं पावँ के छाले
'क़मर' मैं हूँ मुख़्तार तंज़ीम-ए-शब का
हैं मेरे ही बस में अँधेरे उजालेक़मर जलालवी
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