नहीं कुछ काम रस्ते के चरागों का उजालों में ।
ज़हर ये किसने घोला है हवाओं के ख्यालों में ।
पयामे इत्तिहादे दीनो मिल्लत दे रहे हैं वो,
सबूते यक जवां मर्दी नहीं है जिनकी चालों में ।
वो जो कहते हैं उल्फत की हवा हम को नहीं लगनी,
उलझ जाएंगे कल इक टुक निगाहों के सवालों में ।
अरे ओ मैकशे नादाँ ज़रा कुछ क़ुर्बें साक़ी रख,
शराब उड़ कर नहीं आती है खुद-ब-खुद प्यालों में ।
समाअत हो गई बहरी मिरी और हो भी ना क्योंकर,
ख़िताबत में है ख़ुश्की और चिकना पन निवालों में
ख़मोशी ख़ूब बेहतर है हिसारे दानिशां में,दोस्त,
ख़्यालों के कबूतर खूब उड़ा, लेकिन ख़्यालों में ।
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