अब कोई ख़्वाब नहीं, नींद नहीं, आंखें नहीं
ज़िन्दगी अच्छी-बुरी जैसी भी गुजरे, गुजरे
उसके वालिद नवाब हैं भाई !
उसको हक है हमें भुलाने का
याद आते हैं तेरे होंठ तो हँस पड़ते हैं
भूल जाते हैं तेरी याद में रोना है हमें
किसी का हो के ही मालूम होगा
किसी का क्यूँ कोई होता नहीं है
मानोगे इक बात कहो तो बोलूं मैं
होने को है रात कहो तो बोलूं मैं?
पांच बजे ही मेरी बारी थी, थी ना?
हुए हैं पौने-सात कहो तो बोलूं मैं !
बूंद-बूंद में खून उतर आया देखो!
कैसी है बरसात, कहो तो बोलूं मैं?
गोया ऐसा खेल नहीं है दुनिया में
शह में बैठी मात कहो तो बोलूं मैं
इंसां हो तो इंसां रहना सीखो, और
गन्दी-गन्दी बात कहो तो बोलूं मैं?
काले करतब काले धंधे वाले लोग
पूछ रहे हैं ‘ज़ात’ कहो तो बोलूं मैं
केवल आंतें टूट रही हैं बाकी ‘दीप’
अच्छे हैं हालात कहो तो बोलूं मैं?
मानोगे इक बात कहो तो बोलूं मैं
होने को है रात कहो तो बोलूं मैं?
पांच बजे ही मेरी बारी थी, थी ना?
हुए हैं पौने-सात कहो तो बोलूं मैं !
बूंद-बूंद में खून उतर आया देखो!
कैसी है बरसात, कहो तो बोलूं मैं?
गोया ऐसा खेल नहीं है दुनिया में
शह में बैठी मात कहो तो बोलूं मैं
इंसां हो तो इंसां रहना सीखो, और
गन्दी-गन्दी बात कहो तो बोलूं मैं?
काले करतब काले धंधे वाले लोग
पूछ रहे हैं ‘ज़ात’ कहो तो बोलूं मैं
केवल आंतें टूट रही हैं बाकी ‘दीप’
अच्छे हैं हालात कहो तो बोलूं मैं?
उपवन सूने मधुबन सूने
सूनी हो गयी नदी अपार
सूनी हो गयी गलियाँ बाबुल
सूने हो गये सब त्यौहार
सूनी हो गयी माँग सखी की
सूना कमरा और ओसार
सूनी हो गयी फूल-सी दुलहिन
और दुलहिन का हार-सिंगार
सूनी हो गयी साँझ-दुपहरी
सूनी रजनी और भिनसार
सूने हो गये रहट-मोट और
पुरुअट के वह पहरेदार
सूनी हो गयी तिलहन-दलहन
सूना कोठा और भखार
सूने हो गये आम के लोप्पे
सूना हुआ लबेदा मार
सूना हो गया नइहर-सासुर
खिचड़ी, कजरी, सोहर-चार
सूनी हुईं जिउतिया माई
सूना पोखर, नहर, कछार
सूने हो गये रास-रचैया
सूनी हुई कदम्ब की डार
सूना हो गया जमना किनारा
सूनी नौका बिन पतवार
सूने हो गये मात-पिता और
सूनी हो गयीं बहिनी चार
सूना ‘दीप’ और बाती सूनी
सूना सारा घर-संसार..
उसकी आंखें ख़्वाब का गहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
उसकी बातें शहद का बहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
उस की नज़ाकत, उसकी शरारत, हक है-हक है, जादू है
उस जोबन का रक़्सां रहना अए-हए अए-हए क्या कहना
उस के गुलाबी आरिज लिखना ‘खिलते गुलों की खुश्बू हैं’
और उसकी ज़ुल्फ़ों पे कहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
उसकी हया, उफ उसकी हया और क्या ही हया मक़बूल हया
उस हुस्नां ने लहँगा पहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
नाक का तिल और तिल की बनावट गोया लिखावट अरबी, उफ..
और उर्दू का लफ्जे-बरहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
उसकी ग़ज़ल और उसका तरन्नुम उसकी ग़ज़ल के काफ़िये हाए
ऐ आलिम! औक़ात में रहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
जिसका तसव्वुर है वो बिहारन, उस लड़के का कहना ही क्या
उस लड़के को बस ये कहना ‘अए-हए अए-हए क्या कहना’
पीठ पे गेसू ‘फ़र्श पे नागन’, कान में झुमका ‘फ़लक पे चांद’
किस संदूक का है यह गहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
लचक कमर की, मटक नजर की, हँसी कहर की, जानते हो?
उससे अना का परबत ढहना, अए-हए अए-हए क्या कहना
मरने की मेरे वजह हैं कुछ बदले हुए लोग
मय्यत मेरी ले जाना तो कांधा न बदलना
मय्यत भी मेरी निकली तो बलखाते हुए ‘दीप’
जब तक मैं जीया था बड़ा गुलजार जीया था
दुनिया हँसता देखेगी तो पत्थर मारेगी
थोड़ा-थोड़ा मुँह लटकाए रहना पड़ता है
उम्र के छप्पर से टकराती-लुढ़कती, बूँद-बूँद
मौत की हाँड़ी में साहिब! चू रही है जिन्दगी
क्या गजब तौर की मुहब्बत है
खूं-सने कौर की मुहब्बत है
एक घंटे में इश्को-वस्लो-हिज्र?
जी! नये दौर की मुहब्बत है
क्यों मुझे कस रही है गलबहियां
तू किसी और की मुहब्बत है
कल जो शर्मा के साथ? हां!वो ही
अब वो राठौर की मुहब्बत है
जिसका धंधा है बस उदासी का
वो किसी ठौर की मुहब्बत है?
जिस्म उरियां है और दिल उधड़ा?
आह..बिजनौर की मुहब्बत है
दिल के कश्मीर की ये हालत,उफ़
किसके लाहौर की मुहब्बत है
हदीसो-वेद रखे जाएंगे सनद के लिए
सितार ले के पढ़ा जाएगा दीवान मेरा
दीपक शर्मा ‘दीप’