मैं चाँद क़े रू-ब-रु आया भी तो बरसात के मौसम में,
मेरे आँसू बह रहे थे और वो बरसात समझ बैठा।
मेरे घर की मुफलिसी को देख कर
बदनसीबी सर पटकती रह गई
और एक दिन की मुख़्तसर बारिश के बाद
छत कई दिन तक टपकती रह गई.
वो भी क्या शाम थी बरसे थे टूट के
बादल जुलाई के हर जगह
हाथों में छतरियां दोनों के थी
मगर भीगे थे दोनों ही बेवजह
अब कौन घटाओं को, घुमड़ने से रोक पायेगा,
ज़ुल्फ़ जो खुल गयी तेरी, लगता है सावन आयेगा
मेरे घर की मुफलिसी को देख कर
बदनसीबी सर पटकती रह गई
और एक दिन की मुख़्तसर बारिश के बाद
छत कई दिन तक टपकती रह गई.
मेरे घर की मुफलिसी को देख कर
बदनसीबी सर पटकती रह गई
और एक दिन की मुख़्तसर बारिश के बाद
छत कई दिन तक टपकती रह गई.
याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था
- नासिर काज़मी
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई
- जमाल एहसान
शायद कोई ख्वाहिश...
शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है,
मेरे अन्दर बारिश होती रहती है
- अहमद फ़राज़
धूप सा रंग है और खुद है वो छाँवो जैसा
उसकी पायल में बरसात का मौसम छनके
- क़तील शिफ़ाई
उस को आना था...
उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं
रात भर बारिश थी उस का रात भर पैग़ाम था
- ज़फ़र इक़बाल
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
वो अब क्या ख़ाक आए...
वो अब क्या ख़ाक आए हाए क़िस्मत में तरसना था
तुझे ऐ अब्र-ए-रहमत आज ही इतना बरसना था
- कैफ़ी हैदराबादी
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
- अंजुम सलीमी
भीगी मिट्टी की महक...
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
- मरग़ूब अली
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
- निदा फ़ाज़ली
टूट पड़ती थीं घटाएँ...
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
- जमाल एहसानी
कच्ची दीवारों को...
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
पहली बारिश ही ने बरसात की ढाया है मुझे
- ज़ुबैर रिज़वी
घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
- मुनीर नियाज़ी
दूर तक छाए थे बादल...
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
- क़तील शिफ़ाई
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तंहाई चुराने आई
- कैफ़ भोपाली
बरस रही थी...
बरस रही थी बारिश बाहर
और वो भीग रहा था मुझ में
- नज़ीर क़ैसर
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है
जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की
- परवीन शाकिर
मैं कि काग़ज़ की एक...
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
- तहज़ीब हाफ़ी
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
- गुलज़ार
1.
कश्मकश कुछ इस कदर है जिंदगी में
कि कोई दुआ भी उसे सुलझा न सकी,
दिल में लगी है आग कुछ इस तरह से
आँखों से होती बारिश भी इसे बुझा न सकी।
2.
कब से दबा रखी है दिल में
काश पूरी ख्वाहिश हो जाए
मिल जाए वो हमें उम्र भर के लिए तो
दिल की इस बंजर धरती पर खुशियों की
बारिश हो जाए।
3.
सींचता रहा मैं जिस रिश्ते को
प्यार के नीर से
गलतफहमियों की बारिश में
मिट गए वो तकदीर से।
4.
लिपट रही है पाँव में
सर पे जो चढ़ रही थी
जब-जब पड़ी थी बारिश
धूल अपनी फितरत बदल रही थी।
5.
जरूर दिल किसी ने बादलों का भी दुखाया होगा,
वर्ना इतनी शिद्दत से बरसता कौन है।
6.
ऋतुओं ने अपना रुख कुछ इस तरह से बदला है
कि आज ये बदल बेमौसम ही बरसा है,
बहुत मुद्दत की दुवाओं के बाद मिले हो तुम
क्या बतायें तुमसे मिलने के लिए
ये दिल कितना तरसा है?
7.
अमीरों के महल पर तो कोई असर न होगा
डर तो गरीब की झोंपड़ी के बहने का है,
बदल का तो काम है बरसना
सवाल तो उस बरसात में डटे रहने का है।
8.
खिल उठे ये पेड़ और पौधे
छाई चारों ओर हरियाली है,
सावन में पड़ती इस बारिश की
अदा ही बहुत निराली है।
9.
दूर हुए तुझसे अरसा हो गया
मगर ये बारिश आज तुम्हारी याद दिला रही है,
दिल का हर अरमान हो चुका है ठंडा
और सीने में एक अजीब सी आग जल रही है।
10.
बड़ी मुद्दतों से जो हम चाहते थे आज वो ही बात हो गयी,
तुम क्या मिले जो हमें जिंदगी में खुशियों की बरसात हो गयी।
11.
जमीं को चूमने जो आसमाँ से निकली वो
समां गयी इस कदर की उसका कोई वजूद न रहा।
12.
सफेदपोश जो बैठे हैं काले धंधे करके
वो डरते हैं कहीं उनके राज न खुल जाएँ,
रोकते हैं वो इस वजह से सच्चाई की बारिश को
कहीं इस बरसात में उनके झूठ न धुल जाएँ।
13.
सारी शब होती रही अश्कों की बरसात बेइन्तेहाँ
आँखें सूख चुकी थीं सहर होते-होते।
14.
काली घटाओं ने जब-जब धरती को पानी से भिगाया है,
मेरा बचपन हर बार लौट कर मेरे सामने आया है।
15.
अश्कों की बारिश में डूब गया हर अरमान मेरा
जिंदगी के दरिया में अब तैरने कि ख्वाहिश न रही।
No comments:
Post a Comment