Monday, July 13, 2020

सियासत, सियासी शायरी

सिर्फ बाक़ी रह गया बेलौस रिश्तों का फ़रेब
कुछ मुनाफिक हम हुए, कुछ तुम सियासी हो गए
- निश्तर ख़ानकाही

हमें तो अहल-ए-सियासत ने ये बताया है
किसी का तीर किसी की कमान में रखना
- महबूब ज़फ़र

हुकूमत से एजाज़ अगर चाहते हो
अंधेरा है लेकिन लिखो रोशनी है

सरों पर ताज रक्खे थे क़दम पर तख़्त रक्खा था 
वो कैसा वक़्त था मुट्ठी में सारा वक़्त रक्खा था 
- ख़ुर्शीद अकबर

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