Tuesday, July 14, 2020

उठे मेरी पलकें कत्ले आम न हो जाए

खेल तेरी नजरों का मेरे साथ न खेल
उठे मेरी पलकें कत्ले आम न हो जाए

हुनर अगर है तेरे पास बिछाओ जाल
हुस्न के बगैर क्या खाक है तुम्हारे खयाल

सुनो तुम, कीसे उतारोगे कलम से कागज पर
हमें आँखो से पढकर तो बने हो शायर

तुम्हारी सोच की हदों से वाकिफ है
तुम क्या बयाँ करोगे, कायनात है हम

रहने भी दो यारो क्यूँ हाथ जलना जलाना
हुस्न और इश्क़ का याराना है पुराना

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