साधारण जीवन की सिमटती धार पर,
लहरें बनके यदि चलो तुम, तो ले चलूँ तुम्हें ।
कभी ना यह पूछ लेना, किस दिशांओं से आ रहा हूँ,
है कहाँ वह मंजिल मेरी, जिसे धोने मै जा रहा हूँ |
चाहें जितनी भी सहनी पडे पत्थरों की चोट,
बस एक आवांज दुनिया को सुनाई दे सदा कलकल |
साधारण जीवन की सिमटती धार पर,
लहरें बनके यदि चलो तुम, तो ले चलूँ तुम्हें ।
रास्तो में चाहे कितनी भी तुमको मिलेंगे विपदा,
चांहे कितनी भी ऊंची शिला के खण्ड होंगे |
समय काल बनके रास्ता रोंके,
चांहे कितनी भी प्रपातों के भयानक झुँड में,
अनजाने में भी भय न हो, तो ले चलूँ तुम्हें ।
साधारण जीवन की सिमटती धार पर ,
लहरें बनके यदि चलो तुम, तो ले चलूँ तुम्हें ।
हो रही धूमिल चारो दिशाएँ, जैसे रात जगती हो,
घटा की राशियाँ, मानो मन दुखी करके भागती हो |
ऐसे नित्य बदलती प्रकृति की पीड़ा को,
ख़ुशी- ख़ुशी यदि सहने की क्षमता हो, तो ले चलूँ तुम्हें ।
साधारण जीवन की सिमटती धार पर ,
लहरें बनके यदि चलो तुम, तो ले चलूँ तुम्हें ।
जो कड़वाहट है ह्रदय में, उसे भी जीवन का सार बना दूँ,
देख ले यदि एक ज्ञानी, तो उसे मैं सौ बना दूँ,
इस सहजता के पुलकित हो रही साँस में,
प्राण बनकर यदि साथ देती रहो, तो ले चलूँ तुम्हें ।
साधारण जीवन की सिमटती धार पर,
लहरें बनके यदि चलो तुम, तो ले चलूँ तुम्हें ।
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