फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आए
फिर कूजें बोलीं घास के हरे समुंदर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आए
फिर कागा बोला घर के सूने आंगन में
फिर अमृत रस की बूँद पड़ी तुम याद आए
पहले तो मैं चीख़ के रोया और फिर हंसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आए
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
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