Sunday, July 19, 2020

फिर भी ख़ुदा से शिकवा नहीं है कोई।

ज़िन्दगी जीने का आसरा नहीं है कोई,
फिर भी ख़ुदा से शिकवा नहीं है कोई।

पत्थरों में चलकर बड़े हो जाओ बच्चों,
मेरे पास सोने का पालना नहीं है कोई।

रात दिन सहता हूं सितमगर के सितम,
मेरे दिल पे ज़ख़्म हादसा नहीं है कोई।

ये देख लिया मैंने चारों तरफ़ दौड़ कर,
बच के निकलने का रास्ता नहीं है कोई।

जिस पल चाहे चुपचाप थाम ले दामन,
अब मौत से मेरा फासला नहीं है कोई।

हसरतों को बिछुड़े ज़माने हो गए मगर,
पलभर मिलने की कामना नहीं है कोई।

ये सावन भी लौट जाएगा मन मार कर,
मुझे हुक़्म है झूला डालना नहीं है कोई।

रात गए नींद का अहसान क्या करूंगा,
ख़्वाब हक़ीक़त में ढालना नहीं है कोई।

सच का या झूठ का फैसला नहीं करना,
दोस्त बस मुक़दमा हारना नहीं है कोई।

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