Friday, July 31, 2020

अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं

अशआ'र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं 
कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं 

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें 
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं 

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की 
वर्ना ये फ़क़त आग बुझाने के लिए हैं 


आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे 
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं 

देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ 
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं 

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें 
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं! 

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