Saturday, July 4, 2020

दिल बस अब ज़ख़्म नया चाहता है

मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
दिल बस अब ज़ख़्म नया चाहता है

कब तलक लोग अंधेरे में रहें
अब ये माहौल दिया चाहता है

मसअला मेरे तहफ़्फ़ुज़ का नहीं
शहर का शहर ख़ुदा चाहता है

मेरी तन्हाइयां लब मांगती हैं
मेरा दरवाज़ा सदा चाहता है

घर को जाते हुए शर्म आती है
रात का एक बजा चाहता है

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