Friday, July 24, 2020

लकीर शायरी

समझो पत्थर की तुम लकीर उसे
जो हमारी ज़बान से निकला
- दाग़ देहलवी


फैलती जा रही है सुर्ख़ लकीर
जैसे कोई लहू में तर है यहां
- अख़्तर होशियारपुरी


कौन देखेगा हाथ पर क़िस्मत
बस लकीरों का जाल लगता है
- दिलशाद नसीम


पीटते रहना लकीरें है अबस
ग़ौर करना चाहिए अस्बाब पर
- रूमाना रूमी


लकीरों को रौशन सितारे दिए
सितारों को अपना मुक़द्दर किया
- ख़ालिद महमूद


बन के लकीरें उभरे हैं
माथे पर राहों के बल
- बाक़ी सिद्दीक़ी

था समुंदर मिरे सामने
मैं लकीरें बनाता रहा
- मेहदी जाफ़र


सूरज को हथेली पे लकीरों की तमन्ना
अब चांद की थाली में किरन है न दिया है
- शमीम हनफ़ी

लकीर खींच के बैठी है तिश्नगी मिरी
बस एक ज़िद है कि दरिया यहीं पे आएगा
- आलम ख़ुर्शीद


कोई दिमाग़ से कोई शरीर से हारा
मैं अपने हाथ की अंधी लकीर से हारा
- ओबैदुर रहमान

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