Friday, July 10, 2020

बारिश - गुलजार शायरी

मैं चुप कराता हूं हर शब उमड़ती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है



बारिश आने से पहले
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है
सारी दरारें बन्द कर ली हैं
और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है
खिड़की जो खुलती है बाहर
उसके ऊपर भी एक छज्जा खींच दिया है
मेन सड़क से गली में होकर, दरवाज़े तक आता रास्ता
बजरी-मिट्टी डाल के उसको कूट रहे हैं !
यहीं कहीं कुछ गड़हों में
बारिश आती है तो पानी भर जाता है
जूते पाँव, पाँएचे सब सन जाते हैं

गले न पड़ जाए सतरंगी
भीग न जाएँ बादल से
सावन से बच कर जीते हैं
बारिश आने से पहले
बारिश से बचने की तैयारी जारी है !


बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
दर-ओ-दीवार से टकरा के गुज़रता है गली से
और उछलता है छपाकों में
किसी मैच में जीते हुए लड़कों की तरह

जीत कर आते हैं जब मैच गली के लड़के
जूते पहने हुए कैनवस के उछलते हुए गेंदों की तरह
दर-ओ-दीवार से टकरा के गुज़रते हैं
वो पानी के छपाकों की तरह

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