मग़र यार मेरे तूँ कहाँ दिखाई देता है
लहज़ा जो मिलता है मेरी बहन का माँ से
मुझें हर बेटी में एक माँ दिखाई देता है
आँसू बहाकर ज़िस्म से निकालते हैं दर्द
मग़र दिल मे दर्द का निशाँ दिखाई देता है
ये कैसा शहर है न कोई दरख़्त है न छाँव
जहाँ देखो मकाँ ही मकाँ दिखाई देता है
हालत है ख़राब यहाँ दिल-ए-बीमार का
और तुमको मोहब्बत आसाँ दिखाई देता है
एक तरफ़ देखता हूँ आरजू- ए -इंसान
एक तरफ़ इंसानियत फ़ना दिखाई देता है
देखता नहीं कभी भी खुदा को यहाँ रौशन
देखता हूँ जब भी बस माँ दिखाई देता है
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