Saturday, July 4, 2020

कुछ नहीं कोई बददुआ भेजो

अपनी मंज़िल का रास्ता भेजो 
जान हम को वहाँ बुला भेजो 

क्या हमारा नहीं रहा सावन 
ज़ुल्फ़ याँ भी कोई घटा भेजो 

नई कलियाँ जो अब खिली हैं वहाँ 
उन की ख़ुश्बू को इक ज़रा भेजो 


हम न जीते हैं और न मरते हैं 
दर्द भेजो न तुम दवा भेजो 

धूल उड़ती है जो उस आँगन में 
उस को भेजो सबा सबा भेजो 

ऐ फकीरो गली के उस गुल की 
तुम हमें अपनी ख़ाक-ए-पा भेजो 

शफ़क़-ए-शाम-ए-हिज्र के हाथों 
अपनी उतरी हुई क़बा भेजो 

कुछ तो रिश्ता है तुम से कम-बख़्तों 
कुछ नहीं कोई बद-दुआ' भेजो 

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