खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है
अब क्या बताएं टूटे हैं कितने कहां से हम
ख़ुद को समेटते हैं यहां से वहां से हम
दोस्तों का क्या है वो तो यूं भी मिल जाते हैं मुफ़्त
रोज़ इक सच बोल कर दुश्मन कमाने चाहिए
जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूं नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूं ज़िंदा क्यूं नहीं होता
न बोलूं सच तो कैसा आईना मैं
जो बोलूं सच तो चकना-चूर हो जाऊं
आख़िर हटा दीं हम ने भी ज़ेहन से किताबें
हम ने भी अपना जीना आसान कर लिया है
अब क्या कहें नुजूमी के बारे में छोड़िए
अपना तो ये बरस भी कुछ अच्छा नहीं गया
लोग सुनते रहे दिमाग़ की बात
हम चले दिल को रहनुमा कर के
एक ही शख़्स तो जहान में है
ख़ुद को भी गर शुमार कर लिया जाए
-राजेश रेड्डी
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