Sunday, July 19, 2020

परिंदा शायरी

शाख़-दर-शाख़ होती है ज़ख़्मी
जब परिंदा शिकार होता है
- इन्दिरा वर्मा


देख कर इंसान की बेचारगी
शाम से पहले परिंदे सो गए
- इफ़्फ़त ज़र्रीं


टहनी पे ख़मोश इक परिंदा
माज़ी के उलट रहा है दफ़्तर
- रईस अमरोहवी


परिंदा शाख़ पे तन्हा उदास बैठा है
उड़ान भूल गया मुद्दतों की बंदिश में
- खलील तनवीर


मिरे हालात को बस यूं समझ लो
परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है
- शुजा ख़ावर


हमें हिजरत समझ में इतनी आई
परिंदा आब-ओ-दाना चाहता है
- ओबैदुर रहमान

काश ये लफ़्ज़ परों से होते
और 'ख़याल' परिंदा होता
- प्रियदर्शी ठाकुर ख़याल


लुत्फ़ ऊंची उड़ान में क्या है
पूछ लेना किसी परिंदे से
- रूही कंजाही

फड़-फड़ाया मिरे बाहर कोई
और परिंदा मिरे अंदर निकला
- हम्माद नियाज़ी


हवा जब चली फड़फड़ा कर उड़े
परिंदे पुराने महल्लात के
- मुनीर नियाज़ी

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