कुछ गज़ ही दूर होगा, जाऊं या बुलाऊं
वो बन के इक समंदर, आगे तो बढ़ा है
मुश्किल में पड़ गया हूं, डूबूं या डुबाऊं
मिसरी की ये डली है, धीरे ही घुली है
कैसा है स्वाद इसका, कह दूं या छुपाऊं
सुन के ही खो गये सब, मेरी ये कहानी
इस मंज़र को संभाले, फूला ना समाऊं
लम्हें ने मात देकर , पूछा वक़्त से यूं
तूने जो भी लिखा है , काटूं या मिटाऊं
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