Saturday, May 27, 2023

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा

अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा 

ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब 
फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा-डरा 

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है 
मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा-भरा 

लम्बी सुरंग-से है तेरी ज़िन्दगी तो बोल 
मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा 

माथे पे हाथ रख के बहुत सोचते हो तुम 
गंगा क़सम बताओ हमें क्या है माजरा  

दुष्यंत कुमार 

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