Saturday, May 27, 2023

कैसे कहूँ अब नहीं होती मुलाकात मेरी तुम्हारी

कैसे कहूँ अब नहीं होती मुलाकात मेरी तुम्हारी,

अब भी होती है मुलाकात मेरी तुम्हारी, 
रोज़ाना होती है , 
हर सुबह हर शाम होती है, 
कहने को तुम नहीं हो साथ मेरे, 
मुलाकात तो फिर भी हो ही जाती है, 
बंद आँखों में चेहरा दिख जाता है तुम्हारा, 
दिल से दिल की बात भी हर रोज़ होती है, 
दिखाई नहीं देते अब तुम मुझे कहीं भी, 
बैठते भी नहीं अब पास मेरे, 
मगर यादों से तुम्हारी मेरी बात हर रोज़ होती है, 
साथ मेरे चलते नहीं थाम कर तुम हाथ मेरा, 
तुम्हारी परछाई अब मेरे साथ साथ चलती है, 
पुकारते नहीं अब तुम नाम मेरा, 
कानों में मेरे आवाज़ तुम्हारी मगर, 
रह रह कर सुनाई देती है, 
बीत गया महीना सावन का, 
आँखों से मेरे रिमझिम बरसात अब भी होती है, 
अब भी होती है मुलाकात मेरी तुम्हारी, 
कैसे कहूँ अब नही होती मुलाकात मेरी तुम्हारी।

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