Wednesday, May 31, 2023

तुम्हारे दक्ष हाथ जब मेरी परिपक्व देह में स्त्री खोज रहे थे

तुम्हारे दक्ष हाथ 

जब मेरी परिपक्व देह में 
स्त्री खोज रहे थे 
तो यह मेरी प्रीति के कई जन्मों की यात्रा थी 

मैंने पहचाना तुम्हारा स्पर्श 
तुम्हारी गति 
तुम्हारा दबाव 
तुम्हारी लय 

हमारी मृदुल स्मृतियों में मैं एक भावपूर्ण नृत्यांगना थी 
और 
एक उपासक भी 
उस पहाड़ की 
जिस पर देवी का मंदिर था 
प्रसाद रूप में अर्पित किए गेंदा-पुष्पों और सिंदूर से मेरी आस्था कभी नही जुड़ी 

मेरी आस्था थी देवी की नीली रहस्यमय जीभ में 
मेरी आस्था थी उसकी फैली बड़ी लाल जालों से भरी आँखों में 
और 
उसके क्रोधित सौंदर्य में उठे पैर की विनाशक आभा में 

महिषासुर 
बलशाली भुजाओं वाला महिषासुर वहाँ अपनी अंतिम निद्रा में था 

इस दृश्य का भय 
केवल तुम जानते थे 
और मेरी आस्थाओं को भी केवल तुम देख पाते थे 

तब भी तुम्हारे हाथ दक्ष थे 
पतंग उड़ाने में 
बेर तोड़ने में 
संतरे छीलने में 
और 
प्रथम रक्तस्त्राव की असहनीय पीड़ा से बहे मेरे आँसू पोंछने में 

आज भी तुम्हारे हाथ दक्ष हैं 
मुझमें एक स्त्री खोजने में! 

पूनम अरोड़ा


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