Friday, May 12, 2023

तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा

तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा

और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है 


भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्क-ए-उल्फ़त पर वो क्यूँकर याद आते हैं  

देखो तो चश्म-ए-यार की जादू-निगाहियाँ
बेहोश इक नज़र में हुई अंजुमन तमाम 

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते 

याद हर हाल में रहे वो मुझे
अल-ग़रज़ बात रह गई दिल की 


निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे
वो अपनी ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे क्यूँ न नाज़ करे 

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी
दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना 


बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी
बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी 

तुम ने बाल अपने जो फूलों में बसा रक्खे हैं
शौक़ को और भी दीवाना बना रक्खा है 


कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर
इश्क़ में एक मो'तबर न हुई 

ये भी आदाब-ए-मोहब्बत ने गवारा न किया
उन की तस्वीर भी आँखों से लगाई न गई 


'हसरत' बहुत है मर्तबा-ए-आशिक़ी बुलंद
तुझ को तो मुफ़्त लोगों ने मशहूर कर दिया 


हसरत मोहानी 

No comments: