माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था
उस बेवफ़ा से रब्त मगर उम्र भर का था
- रशीद कैसरानी
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है
नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी
~ फ़िराक़ गोरखपुरी
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