बुझ चुकी है शमा,
जल रहा है परवाना,
हे रब्बा मेरे तू बता,
ये कैसा अफसाना।
तलब ये कैसी लगी,
उस दिलजले परवाने को,
तैयार हो चुका है वो,
अपनी हस्ती मिटाने को।
जान जान कहने वाली को,
अब उसने जान लिया,
झोपड़ी को स्वर्ग बता,
उसने ऊंचा मकान लिया है।
दिलजला परवाना तैयार है,
कायामत की कस्ती पर,
निकल चुका है तबाही लाने,
वो अपनी हंसती बस्ती पर ।
छोड़ चला है देखी वो,
अपने सारे नाते,
उसके मन में है बस,
उस शमा की ही बातें।
ना समझा वो मां का दर्द,
ना सुनी भाई की पुकार,
उसके जहन में बस चुका है,
अब किसी और का प्यार।
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