ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा
अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा
तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा
आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा
ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा
ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा
Dagh Dehalvi
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