हर इक बात की वो ख़बर रखता है
सुना है कि हम पर नज़र रखता है
जहाँ भी नज़र दौड़ी वो मिल गया
निगाहों में क्या वो असर रखता है
बदलती रही है वफ़ा यार की
कहूँ कैसे वो पाक नज़र रखता है
घुमंतू होगी नस्ल उसकी तो क्या
अजी साफ़-सुथरा तो घर रखता है
शज़र,चिड़िया और फूल,भँवरे यहाँ
अरे! नादां तू क्यों शरर रखता है
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