आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
वर्षों तक वन में घूम-घूम
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर
पांडव आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन सोता है
देखें, आगे क्या होता है
रामधारी सिंह दिनकर
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