Thursday, May 25, 2023

सच है विपत्ति जब आती है

सच है विपत्ति जब आती है

कायर को ही दहलाती है

सूरमा नहीं विचलित होते

क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं

काँटों में राह बनाते हैं।


है कौन विघ्न ऐसा जग में

टिक सके आदमी के मन में,

खम ठोंक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाँव उखड़,

मानव जब जोर लगाता है

पत्थर पानी बन जाता है।


गुण बड़े एक से एक प्रखर

हैं छिपे मानवों के भीतर,

मेंहदी में जैसे लाली हो

वर्तिका बीच उजियाली हो,

बत्ती जो नहीं जलाता है

रोशनी नहीं वह पाता है।


रामधारी सिंह ‘दिनकर’

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